जनपदीय अध्ययन की चेतना और वासुदेव शरण अग्रवाल

ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities

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Open Access, Multidisciplinary, Peer-reviewed, Monthly Journal

Call For Paper - Volume: 2, Issue: 3, March 2025

DOI: 10.70558/SPIJSH

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Impact Factor: 6.54

Article Title

जनपदीय अध्ययन की चेतना और वासुदेव शरण अग्रवाल

Author(s) ऋषभ पाण्डेय .
Country India
Abstract

भारतवर्ष ग्राम प्रधान देश है। इस देश की सांस्कृतिक एकता के सूत्र भिन्न भिन्न गाँवों से मिलकर बनी अनगिनत इकाइयों में सन्निबद्ध हैं। वासुदेव शरण अग्रवाल ने इस सांस्कृतिक इकाई का प्रस्थान बिंदु भूमि,जन और संस्कृति इन तीन सूत्रों में देखने के लिए प्रेरित किया था। ये सूत्र ही भारतीय लोकमानस की उस सहजीविता की ओर इशारा करते हैं जो देश की अलग अलग भौगोलिक इकाइयों में लोकज्ञान के साथ अलग अलग जनपदों का निर्माण करता है। उदाहरण के तौर पर जिस तरह अवधी एक जनपदीय भाषा है किंतु अवधी का सांस्कृतिक विस्तार जिस कैनवास पर हुआ है वहाँ हम देखते हैं कि किस तरह एक लोकभाषा अलग अलग रूपों या उपभाषाओं में अपनी अपार भाषिक संपदा के साथ एक जनपदीय इकाई की तरह उपस्थित है। जनपदीय अध्ययन बीसवीं शताब्दी के लगभग चार दशकों बाद औपनिवेशिक संस्कृति के प्रभाव से उपजी हीनता ग्रंथि का एक प्रतिरोध भी था। इस आलेख में वासुदेव शरण अग्रवाल की जनपदीय अध्ययन की अवधारणाओं पर विचार किया गया है।

Area Sociology
Published In Volume 2, Issue 2, February 2025
Published On 27-02-2025
Cite This , . . (2025). जनपदीय अध्ययन की चेतना और वासुदेव शरण अग्रवाल. ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities, 2(2), pp. 80-86.

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