1 |
Author(s):
Vikas Singh.
Country:
India
Research Area:
Sociology
Page No:
1-9 |
Globalization: The phenomenon in making
Abstract
Globalization, in its modern day avtar, is a very complex and multi-dimensional process/phenomenon. But at the core of it, is a process of international economic integration, which also has a very comprehensive and far-reaching socio-cultural and political dimensions. In fact modern form of globalization is the most decisive and defining phenomenon of contemporary world.
Keywords: Neo-liberalism, Internationalism, Hybridization, High modernity, glocalisation.
As a new term ‘Globalization’ was initially used by a limited number of academies to denote an economic process / phenomenon. It gained widespread acceptance in the 1990s, and has since become a household Phrase. Numerous languages have included it into their lexicon, and academic disciplines from a range of backgrounds have made it the focal point of their research and publication activities.
2 |
Author(s):
Mahesh Yadav, Raj Veer Singh.
Country:
India
Research Area:
Physical Education
Page No:
10-12 |
Relationship Between Personality Dimensions and Emotional Intelligence of Players & Non-Players
Abstract
Present study has been aimed to see the relationship between personality dimensions and emotional intelligence of players & non players selected from different colleges of U.P. Personality dimensions of players & non players was assessed by using Eysenck’s Personality Test & for emotional intelligence of all the male and female players & non players Emotional Intelligence Test prepared by S.K. Mangal & Shubhra Mangal (1995) was used. The age of the samples ranged from 19 to 25 years & all the samples were selected from random basis. Results indicated that players &non players (male & female) have shown significant relationship among personality dimensions& emotional intelligence.
3 |
Author(s):
Gao Jing, Liu Gang.
Country:
Malaysia
Research Area:
Psychology
Page No:
13-24 |
Recent Advances in Educational Interventions for Kindergarten Children with Autism Spectrum Disorder
Abstract
This paper delves into the most recent educational interventions designed specifically for kindergarten children diagnosed with autism spectrum disorder (ASD). Recognizing that early diagnosis and timely intervention are vital for providing effective support, the review emphasizes a variety of evidence-based strategies that have been developed to meet the unique needs of these children. It also discusses innovative technological advancements, such as interactive apps and assistive devices, which facilitate learning and engagement. Additionally, the paper highlights the significance of individualized education plans (IEPs) that cater to the specific strengths and challenges of each child, fostering improvements in communication, social skills, and academic performance. By examining case studies and research findings, the review underscores the effectiveness of these tailored approaches. Ultimately, the paper concludes by stressing the critical importance of collaboration among educators, families, and specialists in creating a comprehensive support system that ensures each child’s success in a learning environment. This collective effort not only enhances educational outcomes but also promotes the overall development and well-being of children with ASD.
4 |
Author(s):
विनीत कुमार गुप्ता, डॉo शिव प्रसाद.
Country:
India
Research Area:
Geography
Page No:
25-38 |
बलिया जनपद (उप्र) में सामान्य भूमि उपयोग प्रतिरूप
Abstract
शोध सारांश :-भूगि उपयोग का अध्ययन एक उपयोगी प्रक्रिया है जिरागें किसी क्षेत्र में पायी जाने वाली भूमि के अनुकूलतम उपयोग की प्रायोजना निर्मित की जाती है, जिससे मानव समाज को अधिकतम लाभ प्राप्त हो सके। इसमें यह भी अनुशीलन किया जाता है कि ऊसर एवं बंजर भूमि तथा कृषि अयोग्य भूमि को कैसे कृषि योग्यभूमि के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है स्वाभाविक है कि इससे फसलोत्पादन का परिक्षेत्र बढ़ेगा जिससे खाद्य संसाधन की दृष्टि से क्षेत्र स्वावलम्बी बनेगा। भारत में अपनायी गई चकबन्दी, भूमि उपयोग नियोजन से सम्बन्धित एक प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न उपयोग वाली भूमियों को जो अलग-अलग Patches के रूप में पायी जाती है, उन्हें एक स्थान पर परिसीमित करना तथा कृषित भूमि के अन्तर्गत अवस्थित छोटे जोतों के खेतों कोएक साथ सम्बद्ध करना जिससे उसमें किसानों के द्वारा सिंचाई, फसल संरक्षण एवं अन्य नवाचार सम्बन्धी प्रयोग किये जा सकें। बलिया जनपद के सन्दर्भ में यह तथ्य उल्लेखनीय है कि यहाँ वनोद्यान एवं चारागाह कुल प्रतिवेदित भूमि के 1.57 प्रतिशत परिक्षेत्र पर पायी जाती है, जो उचित नहीं है क्योंकि मैदानी परिक्षेत्र में न्यूनतम 10 प्रतिशत क्षेत्र वनोंउद्यान, बाग के अर्न्तगत होना चाहिए। इसके अतिरिक्त न्यूनतम 5 प्रतिशत भाग चारागाह के रूप में होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है जनपद के कुल प्रतिवेदित भूमि के 8.16 प्रतिशत परिक्षेत्र पर कृषि योग्य बंजर एवं परती भूमि व 18.29 प्रतिशत परिक्षेत्र पर अकृष्य क्षेत्र एवं 71.38 प्रतिशत परिक्षेत्र पर कृषिकृत भूमि पायी जाती है।
5 |
Author(s):
विनीत कुमार गुप्ता, डॉo शिव प्रसाद.
Country:
India
Research Area:
Geography
Page No:
39-52 |
जनसंख्या वृद्धि का परिदृश्य: बलिया जनपद का एक भौगोलिक अध्ययन
Abstract
सारांश :-अध्ययन क्षेत्र अपने विशिष्ट प्राकृतिक एव सास्कृतिक गुणो के फलस्वरुप प्राचीन काल से ही मानव को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। जिसके कारण कुछ प्रारंभिक समयों को छोड़कर इस क्षेत्र की जनसंख्या में सदैव वृद्धि होती रहती है। शोध क्षेत्र में 1881 से ही जनगणना प्रारंभ होने का उल्लेख मिलता है। किंतु 1891 से पूर्व जनसंख्या संबंधी आंकड़े समुचित रूप से उपलब्ध नहीं है, इसलिए अध्ययन में 1891 से 2011 तक की जनसंख्या संबंधी आंकड़ों का प्रयोग किया गया है। अध्ययन क्षेत्र की जनसंख्या वृद्धि को चार अवस्थाओं में विभक्त कर अध्ययन किया गया है, जिसमें जनसंख्या वृद्धि का प्रथम अवस्था 1921 से पूर्व, द्वितीय अवस्था 1931 से 1951 तक, तृतीय अवस्था 1961 से 1991 तक व चतुर्थ अवस्था 1991 के बाद तक है। अध्ययन क्षेत्र में 1891 से 2011 तक के जनसंख्या वृद्धि को भी तालिका में विभक्त किया गया है। जिससे यह स्पष्ट होता है कि 1891 में जनसंख्या 938101 थी, जो 2011 में बढ़कर 3239774 हो गई। जनसंख्या के क्षेत्रीय परिदृश्य के अंतर्गत 1981-1991, 1991-2001 व 2001-2011 के मध्य जनसंख्या वृद्धि को प्रदर्शित किया गया है, जिसमें 2001-2011 में अति उच्च जनसंख्या वृद्धि के अंतर्गत 3 विकासखंड बांसडीह, रेवती व सोहाव, उच्च जनसंख्या वृद्धि के अन्तर्गत भी 3 विकासखण्ड पन्दह, गड़वार व बेलहरी राग्गिलित है जबकि गध्यग जनरांख्या वृद्धि के अंतर्गत 7 विकाराखंड राियर, नगरा, चिलकहर, नवानगर, हनुमानगंज, दुबहड़ व मुरलीछपरा सम्मिलित है, जबकि निम्न जनसंख्या वृद्धि के अंतर्गत अध्ययन क्षेत्र के दो विकासखंड रसड़ा व मनियर आते है वही अति निम्न श्रेणी के अंतर्गत दो विकासखंड बेरूआरबारी व बैरिया आते हैं। जनसंख्या वृद्धि के प्रभावको के अंतर्गत प्राकृतिक व सांस्कृतिक कारकों का भी अध्ययन किया गया।
6 |
Author(s):
Sanjesh Kumar Mourya.
Country:
India
Research Area:
History
Page No:
53-60 |
संयुक्त प्रान्त में तिलक के होमरुल लीग आन्दोलन का महत्व
Abstract
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुसार, “राष्ट्रवाद एक ऐसा विचार है जो लोगों के भीतर उत्पन्न होने वाली प्रक्रिया के माध्यम से अनुभव किया जा सकता है, लेकिन इसे प्रत्यक्ष रूप से देखा नहीं जा सकता।” रामायण और राष्ट्रवाद की अवधारणाएँ समाज में भलाई और नैतिक उत्थान की प्रेरणा देने की शक्ति रखती हैं। इन दोनों विचारधाराओं का आत्मसात करना इस कारण भी प्रासंगिक है कि ये समाज में एकता और सामाजिक कल्याण की भावना उत्पन्न करती हैं।
इस शोध-पत्र में, शोधकर्ता ने होमरूल लीग आंदोलन के तथ्यों को उजागर करने और उसमें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के योगदान को विशद रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रखर नेता और भारत माता के गौरवशाली पुत्र के रूप में जाने जाते हैं। ब्रिटिश शासन से पूर्व, भारत अनेक राजाओं के अधीन विविधता, धर्मों, भाषाओं, क्षेत्रों, लिपियों और संस्कृतियों से समृद्ध था, जो राष्ट्र की सुंदरता और गरिमा को बढ़ाते थे। लेकिन ब्रिटिश शासन के आगमन के साथ ही देश की आर्थिक और सांस्कृतिक धरोहर क्षीण हो गई और स्वतंत्रता छिन गई।
इस अध्ययन के माध्यम से शोधकर्ता ने तिलक के नेतृत्व में होमरूल लीग आंदोलन के विकास और उसके महत्व को विस्तार से वर्णित किया है। विविध दृष्टिकोणों और ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि तिलक ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में एक सशक्त नेतृत्व स्थापित किया। उनकी दूरदर्शिता और कार्यों ने न केवल स्वतंत्रता की चाह को प्रबल किया, बल्कि उन्होंने देशवासियों में एकता, राष्ट्रवाद और स्व-शासन की भावना को जागृत करने का भी महत्वपूर्ण कार्य किया।
7 |
Author(s):
Avinash Verma.
Country:
India
Research Area:
Geography
Page No:
61-73 |
चित्रकूट जनपद (ऊ.प्र.) में स्थलाकृति का पर्यटन पर प्रभाव: एक भौगोलिक अध्ययन
Abstract
सार: यह शोधपत्र उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले में पर्यटन पर स्थलाकृति के प्रभाव का पता लगाता है, जो अपने ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र है। विंध्य पर्वतमाला, मंदाकिनी नदी और घने जंगलों सहित चित्रकूट की अनूठी स्थलाकृतिक विशेषताएँ इसके पर्यटन परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये विशेषताएँ विभिन्न प्रकार के आगंतुकों को आकर्षित करती हैं, जिनमें इसके धार्मिक स्थलों पर आने वाले तीर्थयात्री से लेकर रोमांच और शांति की तलाश करने वाले प्रकृति प्रेमी शामिल हैं। हालाँकि, जिले का ऊबड़-खाबड़ इलाका महत्वपूर्ण चुनौतियाँ पेश करता है, जैसे पहुँच संबंधी समस्याएँ, पर्यावरणीय गिरावट और मौसमी बदलावों के कारण व्यवधान। यह अध्ययन इन अवसरों और चुनौतियों की विस्तार से जाँच करता है, और सतत पर्यटन विकास के लिए सिफारिशें पेश करता है। प्रमुख रणनीतियों में बुनियादी ढाँचे में सुधार, पर्यावरण संरक्षण उपायों को लागू करना, स्थानीय समुदायों को शामिल करना और मौसमी परिवर्तनशीलता के लिए योजना बनाना शामिल है। इन सिफारिशों को अपनाकर, चित्रकूट भविष्य की पीढ़ियों के लिए अपनी प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपत्तियों को संरक्षित करते हुए एक पर्यटन स्थल के रूप में अपना आकर्षण बढ़ा सकता है।
कीवर्ड: स्थलाकृति, चित्रकूट, पर्यटन, सतत विकास, पहुंच ।
8 |
Author(s):
Dr. Manish Kumar, Shankar Kumar.
Country:
India
Research Area:
Commerce
Page No:
74-86 |
Financial Literacy among College Students of Aurangabad District, Bihar
Abstract
People's financial decisions and results are greatly influenced by their level of financial literacy. This study explores the financial literacy levels of college students in Aurangabad district, Bihar, and analyses the impact of demographic factors on financial literacy. A survey involving 415 students was carried out to examine how education, subject discipline, and parental education influence financial literacy. The research posits that there is correlation between financial literacy and demographic factors, educational background, discipline of subject of education and parental education. The analysis of the data involved the use of Univariate Analysis, Correlation, One Way ANOVA tests and descriptive statistics.
9 |
Author(s):
Unnati Sahai.
Country:
India
Research Area:
Political Science
Page No:
87-94 |
मानवाधिकार और भारतीय संविधान: समसामयिक मुद्दे
Abstract
आज के परिवर्तनकारी समय में क्या मनुष्य केन्द्रबिन्दु है? वर्तमान
काल में शासन, उद्योग, विकास इत्यादि की बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा ने मनुष्य
को पीछे छोड़ दिया है, यह स्थिति आज से ही नहीं, अपितु प्राचीनकाल से
ही चली आ रही है। प्रत्येक मनुष्य को जीवन जीने की स्वतंत्रता तथा
समाज में सम्मानजनक स्थिति पाने का अधिकार होता है, यह जीवन की
प्रथम आवश्यक इकाई है, प्रत्येक व्यक्ति के कुछ आधारभूत व प्राकृतिक
अधिकार होते है जो उसके जीवन के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए
आवश्यक होते है। अतः मानव जाति के इन्ही मूलभूत अधिकारों की
व्याख्या करते हुए, 10 दिसम्बर,1948 ‘मानवाधिकार की सार्वभौम घोषणा’’
चार्टर पर विविध देशों द्वारा हस्ताक्षर कर यह स्वीकृति व्यक्त की गयी कि
मानवाधिकारों की हर कीमत पर रक्षा की जानी चाहिए। यद्यपि भारतीय
संविधान में वर्णित भाग-3 भी इन्ही बातों पर सहमति व्यक्त करता है।
परन्तु आज इन्हीं मानवाधिकारों को वैश्विक स्तर पर अनेक चुनौतियों एवं
संकटों का सामना करना पड़ रहा हैे। जैसे गैर विधिक प्रवासी और
शरणार्थी, मानव व्यापार, लिंग आधारित विभेद, प्रजातीयता, जलवायु
परिवर्तन एवं मानवाधिकार, आतंकवाद कामगार वर्गो का अधिकार, बाल
शोषण इत्यादि। अतः प्रस्तुत लेख मानवाधिकारों के संकटो के संदर्भ में
विमर्शात्मक विवरण प्रस्तुत करता ह
10 |
Author(s):
Dr. Chandraprabha, Aruna Kumari.
Country:
India
Research Area:
Geography
Page No:
95-105 |
Physical Division of South Chhotanagpur Region
Abstract
Natural characteristics of the Earth's surface, such as landforms belies of water, climate zones, and vegetation. These features are part of the natural environment and are often used to describe the landscape of the region. If we want to know about any area of the earth, we must study its physical features and characteristics. Since times immemorial, land has played an important role in shaping the lives of human beings. Every area of the land has a specific physical, cultural, social, economic, and political feature. These specific features played an important role in the development of these regions and their civilization. Nature of rocks, types of rocks, and characteristics of rock decided the shape of physical features of land: Sedimentary rocks record changes in temperature, rainfall, and ocean current through their composition and fossil content. For the development of any region, the government has to make a plan for it. On the way of making and implementing a plan for any region, it is compulsory to know about the region. For studying about any region, its relief and physiography are studied first. So I had tried to study the physiography of south Chhota Nagpur according to my vision. In which it has been divided into so many subregions so that it can be studied nicely. The planner can understand its physical property as well as drawbacks nicely.
11 |
Author(s):
Pratiksha singh.
Country:
India
Research Area:
Entrepreneurship
Page No:
106-116 |
Rise of Electronic Vehicles: Opportunities and Challenges
Abstract
The rise of electronic vehicles (EVs) has ignited a global boom in the automotive industry.
The inherent eco-friendly nature of EVs is compelling people to shift their preferences from
traditional fuel-burning vehicles to battery-powered alternatives. In line with this global
trend, India has set an ambitious target to achieve 100% electric vehicles on its roads by
2030. In India around 1,096 startups are related to EVs. However, a pivotal question surfaces:
are Indians truly aware and prepared to embrace this transformative technology? This paper
attempts to shed light on the current scenario surrounding EVs, examining the opportunities
for adoption rates in the Indian market. Simultaneously, it addresses the formidable
challenges that must be navigated for developing nations like India to seamlessly integrate
and prosper in the era of electronic vehicles.
Keywords: Electric Vehicles (EVs), Start- ups, Awareness, Opportunities, Challenges
12 |
Author(s):
Bhaskar Mishra.
Country:
India
Research Area:
Sanskrit
Page No:
117-129 |
Exploring Physics Concept in Sanskrit Literature
Abstract
The Sanskrit Literature is the ocean of the entire knowledge of the world which explain to the diversified of Scientific ideology. In this sequencecy we get multiple theories of physics in Samskrit Literature. Like as Motion, Gravitation, Electricity, Light & Sound. etc. Advancement in science & technology have been the major reason for the development of human Civilization. Sanskrit Literature has been contributing to the field of Science and technology since ancient times. Even today, what we term as ‘traditional knowledge’ is actually based on scientific reasoning. In the Indian Knowledge System for keeping human life completely secure Rishies not prevalence of that science.
13 |
Author(s):
दुष्यन्त कुमार, कु. रंजना.
Country:
India
Research Area:
Economics
Page No:
130-139 |
ग्रामीण विकास में कृषि ऋण सहकारी एवं गैर ऋण सहकारी समितियों के योगदान का विश्लेषणात्मक अध्ययन
Abstract
ग्रामीण ऋण सहकारी समितियों का अस्तित्व वास्तव में एक संस्थागत प्रणाली के रूप में हुआ ताकि किसानों को किफायती लागत पर ऋण उपलब्ध कराया जा सके और ग्रामीण ऋणग्रस्तता एवं गरीबी इन दो मुद्दों का समाधान किया जा सके। अपने आउटरीच एवं कारोबार की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि की बदौलत ग्रामीण ऋण सहकारी समितियों का ग्रामीण ऋण वितरण व्यवस्था में एक विशिष्ट स्थान है। अल्प एवं दीर्घ-कालिक ऋणों के जरिए वे ग्रामीण क्षेत्रों में लाभप्रदता को बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने, रोजगार अवसर का निर्माण करने एवं गरीब और कमजोर लोगों के लिए सामाजिक तथा आर्थिक न्याय सुनिश्चित कराने के लिए ऋण वितरण के माध्यम से महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते आ रहे हैं। कई समितियों ने कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास के लिए सहकारी ऋण समितियों की प्रासंगिकता और महत्व पर जोर दिया है, जो कि ग्रामीण विकास में अग्रणी भूमिका निभा रही है।
14 |
Author(s):
ममता वर्मा, डॉ० विजय कुमार .
Country:
India
Research Area:
Philosophy
Page No:
140-146 |
न्याय-वैशेषिक दर्शन में धर्म का स्वरूप: एक अवलोकन
Abstract
न्याय- वैशेषिक दर्शन भारतीय दर्शन के आस्तिक दर्शनों में स्थान रखता है। इसमें ईश्वर की सत्ता पर विशेष जोर दिया है। ईश्वर को धार्मिक भावना की तुष्टि के लिए नहीं स्वीकार किया गया है बल्कि व्यक्ति के उनके कर्मों के अनुसार फल प्रदान कर्ता के रूप में स्वीकारा गया है। ईश्वर को सृष्टि कर्ता, पालन कर्ता और संहारक के रूप में स्वीकारा गया है। अदृष्ट, जो हमारे कर्मों के फलों का संचय करता है, उसके संचालक के रूप में ईश्वर है। इन दर्शनों में धर्म का तात्पर्य ईश्वर के सहयोग से मोक्ष प्राप्त करना है। साम्प्रदायिक कर्मकाण्ड का न्याय- वैशेषिक दर्शन के धार्मिक स्वरूप में कोई स्थान नहीं है।