Article Title |
भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं की ऐतिहासिक भूमिका पर शोधपरक दृष्टि |
Author(s) | Sudhir Kumar. |
Country | India |
Abstract |
वर्ष 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक घटना थी। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू किया गया था, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से तत्काल भारत छोड़ने की मांग की थी। गांधीजी ने इस आंदोलन के दौरान ‘करो या मरो’ का ऐतिहासिक नारा दिया था। इस नारे ने पूरे देश को एकजुट कर दिया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक सशक्त संघर्ष को प्रारंभ किया। आंदोलन के दौरान आजादी की प्रबल इच्छा के साथ लाखों भारतीयों ने हिस्सा लिया था। इसमें सभी आयु वर्ग और विभिन्न पृष्ठभूमि की महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। एक तरफ, इस आंदोलन में भाग लेने वाली उषा मेहता तब केवल 22 वर्ष की थीं, वहीं दूसरी तरफ मातंगिनी हाजरा की उम्र तब 73 वर्ष थी। इस आंदोलन में भिन्न-भिन्न पृष्ठभूमि वाली महिलाओं ने अपना सहयोग दिया था, जो यह दर्शाता है कि यह आंदोलन पूरे समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा समर्थित था। बतौर उदाहरण अरुणा आसफ अली और सुचेता कृपलानी जहां एक राजनीतिज्ञ परिवार से संबंध रखती थीं, वहां सुमति मोरारजी का संबंध औद्योगिक घराने से था। आंदोलन का भूमिगत नेतृत्व करने वाली उषा मेहता तब बंबई के विल्सन कॉलेज में पढ़ रही थीं और मातंगिनी हाजरा एक किसान परिवार से ताल्लुकात रखती थीं। इस विविधता ने आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन और दृढ़ता प्रदान की। भारत छोड़ो आंदोलन में अनेकानेक महिलाओं ने भिन्न-भिन्न प्रकार से अपना अहम योगदान दिया। यह लेख कुछ प्रमुख महिलाओं के योगदान को गंभीरता से समझने की कोशिश करती है। |
Area | History |
Published In | Volume 1, Issue 9, September 2024 |
Published On | 04-09-2024 |
Cite This | Kumar, S. (2024). भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं की ऐतिहासिक भूमिका पर शोधपरक दृष्टि. ShodhPatra: International Journal of Science and Humanities, 1(9), pp. 1-6, DOI: https://doi.org/10.70558/SPIJSH.2024.v01.i09.93696. |
DOI | 10.70558/SPIJSH.2024.v01.i09.93696 |